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Saturday, April 13, 2013

Eh Zindagi Tujhe Salaam !!

ऐ  ज़िन्दगी  तुम्हेँ  सलाम !!


This poem is dedicated to all these kids, who spend so many sleepless hungry nights and still don't complain and their one smile can make our day !


सब की ज़िन्दगी में आते हैं ये पल
किसी के में आज तो किसी के में कल
जब लगता है सब कुछ व्यर्थ और न मिलता प्रश्नों का हल
जब लगता है की ज़िन्दगी में है कुछ न बाकी
और पूरी दुनियाँ ही लगती है पापी
इस समय मेरे मन में आती एक ही बात बार-बार
ऐ वक्त ! मै ही क्यों ? और कैसे जाऊँगी मै उस पार |

रात-दिन दिन-रात सोचती हूँ, कोसती हूँ,
और बन्द कमरे में भी अकेले रोती हूँ
फिर भी न निकलता है कोई निश्कर्ष
फिर भी न मिलता है मेरी परेशानीयों का हल और पहाड़ जैसा लगता है अब हर पल|
गीले तकिये पे रोती सोती मनाती हूँ
कल तो करोगे तुम कोई चमत्कार और मुझे निकालोगे इन कष्टों के पार |

चमत्कार तो करते नहीं हो तुम
पर देखती हूँ जब खुली खिड़की के बाहर सूर्य की पहली किरण
सुनती हूँ मन्दिर की घंटी और अज़ान की पुकार
और उनके सामने पीपल के पत्ते समेटती हुई झाडू की आवाज़ |
साथ में आती है एक और आवाज़ , उन रात की भूख से रोते हुए कुछ बच्चों की पुकार
माँ डाँटती हैं उनको , रुको अभी , करो कुछ और देर इंतज़ार
मालकिन के नौकर, फेकेंगे थोड़ी देर में ज़रूर कल का खान-पान |
और फिर आती है मेरे दिल में एक ही बात
मुश्किलें तो दी हैं, पर कम से कम तुमने मुझे दी हैं उनसे कम हर बार
दिल मेरा पसीज जाता है , रोती हूँ खुली आँखों से इस बार
और मनाती हूँ  - मेरी नहीं , मुझसे पहले करो उस परिवार की नाँव उस पार |

पोंछती हूँ अपनी आँखे , तैयार होती हूँ मुश्किलों से लड़ने को दोबारा एक बार
और करती हूँ इस तरह एक नए दिन की शुरुवात |
फिर मन में आता है सिर्फ एक ही ख्याल
ऐ दिल, तू क्यों करता है व्यर्थ बाँतो को सोचने में अपने यह लम्हे बर्बाद
क्योंकि आज के यह हसीन लम्हें न आयेंगे तुम्हारी ज़िन्दगी में बार-बार ||



                                                                                                                       -     पूजा कुमार 



         

                      All images and writing in this document © Pooja Kumar, 2013. 












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